SEPTEMBER 14, 2021
हिंदी दिवस
Hindi Diwas
हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस सेलिब्रेट किया जाता है। इस दिन को भारतवर्ष में बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है। अन्य पर्व की तरह ही भारत के लोगों के लिए हिंदी दिवस भी उतना ही महत्वपूर्ण है। इस दिन स्कूल, कॉलेज, सरकारी कार्यालयों में अलग-अलग तरीकों से इस दिन को सेलिब्रेट किया जाता है। कई कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। 14 सितंबर को देशभर में हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस दिन को विशेष रूप से हिंदी दिवस मनाने के लिए क्यों चुना गया है? आइए 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाने के पीछे का इतिहास बताते हैं।
हिंदी दिवस का इतिहास:
1947 में जब हमारे देश को ब्रिटिश शासन से आजादी मिली, तब उनके सामने भाषा की एक बड़ी चिंता खड़ी हुई। भारत एक विशाल देश है जिसमें विविध संस्कृति है। ऐसी सैकड़ों भाषाएं हैं जो देश में बोली जाती हैं और हजारों से अधिक बोलियां हैं। 6 दिसंबर 1946 को, स्वतंत्र भारत के संविधान को तैयार करने के लिए संविधान सभा को बुलाया गया था। सच्चिदानंद सिन्हा को संविधान सभा के अंतरिम निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया था, बाद में उनकी जगह डॉ. राजेंद्र प्रसाद को नियुक्त किया गया। डॉ. भीमराव अंबेडकर संविधान सभा के प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे। विधानसभा ने 26 नवंबर 1949 को अंतिम मसौदा पेश किया। इसलिए, स्वतंत्र भारत ने 26 जनवरी 1950 को पूरी तरह से अपना संविधान प्राप्त किया।
1947 में जब हमारे देश को ब्रिटिश शासन से आजादी मिली, तब उनके सामने भाषा की एक बड़ी चिंता खड़ी हुई। भारत एक विशाल देश है जिसमें विविध संस्कृति है। ऐसी सैकड़ों भाषाएं हैं जो देश में बोली जाती हैं और हजारों से अधिक बोलियां हैं। 6 दिसंबर 1946 को, स्वतंत्र भारत के संविधान को तैयार करने के लिए संविधान सभा को बुलाया गया था। सच्चिदानंद सिन्हा को संविधान सभा के अंतरिम निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया था, बाद में उनकी जगह डॉ. राजेंद्र प्रसाद को नियुक्त किया गया। डॉ. भीमराव अंबेडकर संविधान सभा के प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे। विधानसभा ने 26 नवंबर 1949 को अंतिम मसौदा पेश किया। इसलिए, स्वतंत्र भारत ने 26 जनवरी 1950 को पूरी तरह से अपना संविधान प्राप्त किया।
लेकिन फिर भी, संविधान के लिए एक आधिकारिक भाषा चुनने की चिंता अभी भी अनसुलझी थी। एक लंबी बहस और चर्चा के बाद, हिंदी और अंग्रेजी को स्वतंत्र भारत की आधिकारिक भाषा के रूप में चुना गया। 14 सितंबर 1949 को, संविधान सभा ने देवनागरी लिपि और अंग्रेजी में लिखित हिंदी को एक आधिकारिक भाषा के रूप में स्वीकार किया। बाद में, पं. जवाहरलाल नेहरू ने इस दिन को देश में हिंदी दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की। पहला हिंदी दिवस 14 सितंबर 1953 को मनाया गया था।
हिंदी दिवस का महत्व:
आजादी के कुछ साल बाद, भारत की नव-निर्मित सरकार उस विशाल देश में निवास करने वाले असंख्य भाषाई, सांस्कृतिक और धार्मिक समूहों को एक साथ मिलाने का प्रयास कर रही थी। पूर्णता के एकीकरण के लिए भारत को एक अद्वितीय राष्ट्रीय स्वाद की आवश्यकता थी। चूंकि देश के पास स्वयं की कोई एक राष्ट्रीय भाषा नहीं थी, इसलिए प्रशासन द्वारा यह निर्णय लिया गया कि हिंदी वह भाषा हो सकती है जिसकी उन्हें तलाश थी। यह उस समय में आदर्श समाधान साबित हुआ। उस समय, हिंदी उत्तर भारत के अधिकांश हिस्सों में बोली जाने वाली भाषा थी।
आजादी के कुछ साल बाद, भारत की नव-निर्मित सरकार उस विशाल देश में निवास करने वाले असंख्य भाषाई, सांस्कृतिक और धार्मिक समूहों को एक साथ मिलाने का प्रयास कर रही थी। पूर्णता के एकीकरण के लिए भारत को एक अद्वितीय राष्ट्रीय स्वाद की आवश्यकता थी। चूंकि देश के पास स्वयं की कोई एक राष्ट्रीय भाषा नहीं थी, इसलिए प्रशासन द्वारा यह निर्णय लिया गया कि हिंदी वह भाषा हो सकती है जिसकी उन्हें तलाश थी। यह उस समय में आदर्श समाधान साबित हुआ। उस समय, हिंदी उत्तर भारत के अधिकांश हिस्सों में बोली जाने वाली भाषा थी।
हिंदी दिवस हैं हम हिन्दुस्तनिओ की दारोहर
पिछले 67 सालों से हम प्रतिवर्ष हिंदी दिवस मनाते आ रहे हैं। इस वर्ष भी मनाएंगे, लेकिन कोरोना महामारी के चलते पाबंदियां होने के कारण वर्चुअल रूप से ही कार्यक्रमों का आयोजन कर सकेगें। इस बार हिंदी दिवस पर देशभर में कहीं भी बड़े कार्यक्रमों का आयोजन नहीं हो पाएगा।
हिंदी विश्व की एक प्राचीन, समृद्ध तथा महान भाषा होने के साथ हमारी राजभाषा भी है। भारत की मातृ भाषा हिंदी को सम्मान देने के लिए प्रति वर्ष हिंदी दिवस मनाया जाता है। भारत की स्वतंत्रता के बाद 14 सितबंर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से यह निर्णय लिया कि हिंदी की खड़ी बोली ही भारत की राजभाषा होगी।
इस महत्वपूर्ण निर्णय के बाद 1953 से संपूर्ण भारत में 14 सितबंर को प्रतिवर्ष हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा है जो हिंदी भाषा के महत्व को दर्शाता है।
हिंदी ने भाषा, व्याकरण, साहित्य, कला, संगीत के सभी माध्यमों में अपनी उपयोगिता, प्रासंगिकता एवं वर्चस्व कायम किया है। हिंदी की यह स्थिति हिंदी भाषियों और हिंदी समाज की देन है। लेकिन हिंदी भाषी समाज का एक तबका हिंदी की दुर्गति के लिए भी जिम्मेदार है।
अंग्रेजी बोलने वाला ज्यादा ज्ञानी और बुद्धिजीवी होता है। यह धारणा हिंदी भाषियों में हीन भावना लाती है। जिंदगी में सफलता पाने के लिए हर कोई अंग्रेजी भाषा को बोलना और सीखना चाहता है। हिंदी भाषी लोगों को इस हीन भावना से उबरना होगा, क्योंकि मौलिक विचार मातृभाषा में ही आते हैं।
शिक्षा का माध्यम भी मातृभाषा होनी चाहिए। शिक्षा विचार करना सिखाती है और मौलिक विचार उसी भाषा में हो सकता है जिस भाषा में आदमी जीता है। हमें अहसास होना चाहिए कि हिंदी दुनिया की किसी भी भाषा से कमजोर नहीं है।
हिंदी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, और दिल्ली राज्यों की राजभाषा भी है। राजभाषा बनने के बाद हिंदी ने विभिन्न राज्यों के कामकाज में लोगों से संपर्क स्थापित करने का अभिनव कार्य किया है, लेकिन विश्व भाषा बनने के लिए हिंदी को अब भी संयुक्त राष्ट्र के कुल सदस्यों के दो तिहाई देशों के समर्थन की आवश्यकता है।
भारत सरकार इस दिशा में तेजी से कार्य कर रही है। हम संभावनाएं जता सकते हैं कि शीघ्र ही हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा में शामिल कर लिया जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी विदेश यात्रा के दौरान अधिकतर अपना संबोधन हिंदी भाषा में ही देते हैं, जिससे हिंदी भाषा का महत्व विदेशी धरती पर भी बढ़ने लगा है।
चीनी भाषा मंदारिन के बाद हिंदी विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली दूसरी सबसे बड़ी भाषा है। नेपाल, पाकिस्तान की तो अधिकांश आबादी को हिंदी बोलना, लिखना, पढ़ना आता है। बांग्लादेश, भूटान, तिब्बत, म्यांमार, अफगानिस्तान में भी लाखों लोग हिंदी बोलते और समझते हैं।
फिजी, सुरिनाम, गुयाना, त्रिनिदाद जैसे देश की सरकारे तो हिंदी भाषियों द्वारा ही चलाई जा रही हैं। पूरी दुनिया में हिंदी भाषियों की संख्या करीबन एक सौ करोड़ से अधिक है।
हिंदी के ज्यादातर शब्द संस्कृत, अरबी और फारसी भाषा से लिए गए हैं। यह मुख्य रूप से आर्यों और पारसियों की देन है। इस कारण हिंदी अपने आप में एक समर्थ भाषा है। जहां अंग्रेजी में मात्र 10 हजार मूल शब्द हैं। वहीं हिंदी के मूल शब्दों की संख्या 2 लाख 50 हजार से भी अधिक है।
बीसवीं सदी के अंतिम दो दशकों में हिंदी का अंतरराष्ट्रीय विकास बहुत तेजी से हुआ है। विश्व के लगभग 150 विश्वविद्यालयों तथा सैंकड़ों छोटे-बड़े केंद्रों में विश्वविद्यालय स्तर से लेकर शोध के स्तर तक हिंदी के अध्ययन-अध्यापन की व्यवस्था हुई है।
विदेशों से हिंदी में दर्जनों पत्र-पत्रिकाएं नियमित रूप से प्रकाशित हो रही हैं। हिंदी भाषा और इसमें निहित भारत की सांस्कृतिक धरोहर सुदृढ और समृद्ध है। इसके विकास की गति बहुत तेज है।
हिंदी विश्व की एक प्राचीन, समृद्ध तथा महान भाषा होने के साथ हमारी राजभाषा भी है। भारत की मातृ भाषा हिंदी को सम्मान देने के लिए प्रति वर्ष हिंदी दिवस मनाया जाता है। भारत की स्वतंत्रता के बाद 14 सितबंर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से यह निर्णय लिया कि हिंदी की खड़ी बोली ही भारत की राजभाषा होगी।
इस महत्वपूर्ण निर्णय के बाद 1953 से संपूर्ण भारत में 14 सितबंर को प्रतिवर्ष हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा है जो हिंदी भाषा के महत्व को दर्शाता है।
हिंदी ने भाषा, व्याकरण, साहित्य, कला, संगीत के सभी माध्यमों में अपनी उपयोगिता, प्रासंगिकता एवं वर्चस्व कायम किया है। हिंदी की यह स्थिति हिंदी भाषियों और हिंदी समाज की देन है। लेकिन हिंदी भाषी समाज का एक तबका हिंदी की दुर्गति के लिए भी जिम्मेदार है।
अंग्रेजी बोलने वाला ज्यादा ज्ञानी और बुद्धिजीवी होता है। यह धारणा हिंदी भाषियों में हीन भावना लाती है। जिंदगी में सफलता पाने के लिए हर कोई अंग्रेजी भाषा को बोलना और सीखना चाहता है। हिंदी भाषी लोगों को इस हीन भावना से उबरना होगा, क्योंकि मौलिक विचार मातृभाषा में ही आते हैं।
शिक्षा का माध्यम भी मातृभाषा होनी चाहिए। शिक्षा विचार करना सिखाती है और मौलिक विचार उसी भाषा में हो सकता है जिस भाषा में आदमी जीता है। हमें अहसास होना चाहिए कि हिंदी दुनिया की किसी भी भाषा से कमजोर नहीं है।
हिंदी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, और दिल्ली राज्यों की राजभाषा भी है। राजभाषा बनने के बाद हिंदी ने विभिन्न राज्यों के कामकाज में लोगों से संपर्क स्थापित करने का अभिनव कार्य किया है, लेकिन विश्व भाषा बनने के लिए हिंदी को अब भी संयुक्त राष्ट्र के कुल सदस्यों के दो तिहाई देशों के समर्थन की आवश्यकता है।
भारत सरकार इस दिशा में तेजी से कार्य कर रही है। हम संभावनाएं जता सकते हैं कि शीघ्र ही हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा में शामिल कर लिया जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी विदेश यात्रा के दौरान अधिकतर अपना संबोधन हिंदी भाषा में ही देते हैं, जिससे हिंदी भाषा का महत्व विदेशी धरती पर भी बढ़ने लगा है।
चीनी भाषा मंदारिन के बाद हिंदी विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली दूसरी सबसे बड़ी भाषा है। नेपाल, पाकिस्तान की तो अधिकांश आबादी को हिंदी बोलना, लिखना, पढ़ना आता है। बांग्लादेश, भूटान, तिब्बत, म्यांमार, अफगानिस्तान में भी लाखों लोग हिंदी बोलते और समझते हैं।
फिजी, सुरिनाम, गुयाना, त्रिनिदाद जैसे देश की सरकारे तो हिंदी भाषियों द्वारा ही चलाई जा रही हैं। पूरी दुनिया में हिंदी भाषियों की संख्या करीबन एक सौ करोड़ से अधिक है।
हिंदी के ज्यादातर शब्द संस्कृत, अरबी और फारसी भाषा से लिए गए हैं। यह मुख्य रूप से आर्यों और पारसियों की देन है। इस कारण हिंदी अपने आप में एक समर्थ भाषा है। जहां अंग्रेजी में मात्र 10 हजार मूल शब्द हैं। वहीं हिंदी के मूल शब्दों की संख्या 2 लाख 50 हजार से भी अधिक है।
बीसवीं सदी के अंतिम दो दशकों में हिंदी का अंतरराष्ट्रीय विकास बहुत तेजी से हुआ है। विश्व के लगभग 150 विश्वविद्यालयों तथा सैंकड़ों छोटे-बड़े केंद्रों में विश्वविद्यालय स्तर से लेकर शोध के स्तर तक हिंदी के अध्ययन-अध्यापन की व्यवस्था हुई है।
विदेशों से हिंदी में दर्जनों पत्र-पत्रिकाएं नियमित रूप से प्रकाशित हो रही हैं। हिंदी भाषा और इसमें निहित भारत की सांस्कृतिक धरोहर सुदृढ और समृद्ध है। इसके विकास की गति बहुत तेज है।
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